फ़िल्म ‘कोट’ का एक संवाद हमारे समाज के मुंह पर एक तमाचा मारता है और अब भी भेदभाव, ऊंची नीची जाति के बीच अंतर को दर्शाता है। फ़िल्म की कहानी बिहार के एक गांव के बेहद गरीब, नीची जाति के माधव की है। उसके घरवालों को गांव में शादी में तो नहीं बुलाया जाता, मगर किसी के मरने पर जो खाना खिलाया जाता है, उसमें उसके परिवार को बुलाया जाता है।एक बार जब वह ऐसे ही एक भोज में अपनी भूख मिटा रहा था, तो उसने एक अमीर आदमी को कोट पहने देख लिया और तभी से उसके मन मस्तिष्क में यह ख्याल आने लगा कि उस बाबू साहब जैसा मुझे भी एक कोट पहनना है। माधव अपने पिता संजय मिश्रा से एक कोट के लिए बोलता है, तो मां बाप कहते हैं कि इसे किसी भूत प्रेत ने पकड़ लिया है वे उसे अंडवा बाबा के पास ले जाते हैं, जो फ़िल्म का यादगार और बेहतरीन सीन बन जाता है।एक बार वह गांववाले से एक बात सुनता है कि एक रुपया से लाखों रुपये कमाए जा सकते हैं, बस उसके लिए दिमाग चाहिये। माधव उसी समय खुद का बिज़नस करने का फैसला करता है। वह सभी गांववासियों को एक दिन बुलाकर कहता है कि हम नीची जाति के हैं, लेकिन हमारी सोच ऊंची होनी चाहिए, हम सब मिलकर अपना बिज़नस करते हैं। लकड़ी काटकर बांस से पंखा खिलौना बनाया और बेचना शुरू किया जो एक बड़े कारोबार का रूप ले लेता है।इस बीच माधव और साक्षी की एकतरफा प्रेम कहानी भी चलती रहती है। नसीरूद्दीन शाह की आवाज में उसके रोमांस की दास्तान कुछ यूं बयान होती है। माधव की कहानी भी हर आशिक की तरह है, जो पिछले 3 साल से लट्टू की तरह एक लड़की के पीछे नाच रहा है। इस मजनू के पास खाने के लिए पैसे नही हैं और चले हैं इश्क लड़ाने।माधव साक्षी से एकतरफा प्यार करता है, लेकिन उसका दिल उस समय टूट जाता है जब उसकी शादी एक नौकरी वाले लड़के से हो रही होती है। वह बारात में जाकर नागिन डांस करने लगता है और कहता है कि अगर हम छोटी जाति के न होते तो आज वह मेरी होती। समाज से आज भी भेदभाव खत्म नही हो रहा है। यह बहुत ही शानदार दृश्य है, जहां विवान शाह ने अपनी अभिनय क्षमता का अद्भुत प्रदर्शन किया है।
समाज के कड़वे सच को दर्शाती है संजय मिश्रा की फ़िल्म 'कोट'…..
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