तुलसीदास जयंती: जैसे जन्म के बाद सामान्य रूप से कोई भी बच्चा रोता है और न रोने पर लोग चिंता करने लगते हैं किंतु तुलसीदास रोए नहीं थे, उनके मुख से राम का नाम निकला. जन्म के साथ ही उनके 32 दांत और भारी भरकम डील डौल था. मां के गर्भ में वह 12 माह रहे थे।
इन परिस्थितियों में किसी अमंगल की आशंका में माता हुलसी ने जन्म तीन दिन बाद ही अपनी दासी चुनिया के साथ उन्हें उसकी ससुराल भेज दिया और दूसरे दिन वे स्वयं ही इस संसार से चल बसीं. पांच वर्ष की अवस्था में दासी चुनिया ने भी संसार छोड़ दिया. अब तो बालक अनाथ हो गया और द्वार द्वार भटकने लगा. उसकी इस दशा को देख कर माता पार्वती उन्हें रोज खाना खिलाने आती थीं।
गुरु का पढ़ाया पाठ एक बार में ही कर लेते थे याद स्वामी नरहर्यानन्द जी ने उनका नाम रामबोला रखा और अयोध्या में संवत 1561 में माघ शुक्ल पंचमी के दिन यज्ञोपवीत कराया. बिना सिखाए ही रामबोला ने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया तो सब लोग चकित रह गए. रामबोला गुरुमुख से सुनी हुई बात एक बार में याद कर लेते थे।
सोरों में स्वामी नरहरि जी ने उन्हें राम चरित सुनाया. काशी में शेष सनातन जी के सानिध्य में रह कर तुलसीदास ने 15 वर्षों तक वेद वेदांग का अध्ययन किया. लोकवासना जाग्रत होने पर वह गुरु की आज्ञा से जन्मभूमि राजापुर लौट आए।