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चीन के'वॉटर वार' के खतरे का जवाब.

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नई दिल्ली:भारत सरकार ने अपनी पूर्वोत्तर सीमा के पास चीन) के बांध निर्माण की रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में, अरुणाचल प्रदेश में 2,000 मेगावाट की ऊपरी सुबनसिरी परियोजना सहित 12 लंबित जल विद्युत परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की 3 जल विद्युत कंपनियों को जिम्मेदारी सौंपी है.3 सार्वजनिक क्षेत्र की पनबिजली कंपनियों NHPC, SJVN और थर्मल पावर दिग्गज NTPC की सहायक कंपनी NEEPCO ने 11,517MW की कुल क्षमता वाली परियोजनाओं को संभालने के लिए ईटानगर में अरुणाचल प्रदेश सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. इससे पहले नववंबर 2022 में एक रिपोर्ट सामने आई थी कि बिजली मंत्रालय 30,000 मेगावाट की कुल क्षमता वाली रुकी हुई जलविद्युत परियोजनाओं को संभालने के लिए जलविद्युत कंपनियों को अपने अधीन कर रहा है.यह कदम, चीन के साथ ‘वॉटर वार’ के खतरे का जवाब देने के अलावा 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% से अधिक बिजली हासिल करने के लिए उठाया गया है. भारत का लक्ष्य खुद को 2070 तक कॉर्बन उत्सर्जन में ‘नेट जीरो’ बनाने का है. साथ ही यह कदम अपनी क्लाइमेट एक्शन स्ट्रेटेजी के हिस्से के रूप में जल विद्युत परियोजनाओं पर सरकार के जोर को भी रेखांकित करता है.वर्तमान में, भारत की कुल बिजली आपूर्ति में 70% कोयला और 25% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से आता है. ये परियोजनाएं अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा निजी डेवलपर्स को आवंटित की गई थीं. लेकिन फंडिंग, विशेषज्ञता, भूमि अधिग्रहण और मंजूरी जैसे मुद्दों के कारण लटकी हुई थीं. NHPC को 3,800 मेगावाट की कुल क्षमता वाली 2 परियोजनाएं, SJVN को 5,097 मेगावाट की 5 परियोजनाएं और NEEPCO को 2,620 मेगावाट की 5 परियोजनाएं आवंटित की गई हैं.केंद्रीय बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर के बाद कहा, ‘राज्य की प्रति व्यक्ति आय महाराष्ट्र और गुजरात से अधिक हो जाएगी. अमेरिका, कनाडा और नॉर्वे सहित सभी विकसित देशों ने अपनी जलविद्युत क्षमता का 80% से 90% इस्तेमाल कर लिया है. भारत में भी जल विद्युत की क्षमता का इस्तेमाल करने वाले राज्य समृद्ध हुए हैं. पनबिजली के उपयोग से भूजल स्तर में भी वृद्धि होगी और वनस्पतियों और जीवों के विकास को बढ़ावा मिलेगा.’

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