मनोरंजन न्यूज़ डेस्क – कैलाश खेर अपनी अलग आवाज और ताल के लिए जाने जाते हैं। उनका सूफी अंदाज और दिल को छू लेने वाली खूबसूरत आवाज उन्हें सबसे अलग बनाती है। कैलाश खेर आज जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया है। दिल्ली के रहने वाले और उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर मेरठ में पले-बढ़े कैलाश खेर का संघर्ष कम उम्र में ही शुरू हो गया था। 14 साल की उम्र में कैलाश खेर खुद को ढूंढने के लिए अपने घर से भाग गए। इसके बाद वह सीधे ऋषिकेश की पहाड़ियों पर पहुंचे और आश्रमों को अपना घर बना लिया।
जब कैलाश ने की थी अपनी जान लेने की कोशिश
कैलाश खेर के बेचैन मन को फिर भी राहत नहीं मिली और उनका संघर्ष इतना बढ़ गया कि उन्होंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा, लेकिन उनकी किस्मत में दुनिया भर में नाम कमाना लिखा था। अपनी ही उलझनों से परेशान होकर कैलाश खेर ने गंगा नदी में छलांग लगा दी। उन्हें ऐसा करते देख एक अज्ञात व्यक्ति उनके पीछे नदी में कूद गया। उन्होंने कैलाश खेर को बाहर निकाला और ऐसा कदम उठाने के लिए जोरदार तमाचा जड़ दिया।
बिना किसी ट्रेनिंग के आवाज में जादू है
इस घटना के बाद कैलाश खेर ने खुद को पूरे दिन कमरे में बंद रखा। फिर बाहर आकर गंगा आरती का हिस्सा बनने लगे। कैलाश खेल ने संगीत की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, लेकिन उन्हें गाने का शौक बचपन से ही था। कैलास 4 साल की छोटी उम्र से ही गाते थे। उनका फिल्मी गानों से कोई लेना-देना नहीं था, सिंगर राधा और कृष्ण से जुड़े गाने गाते थे।
ऋषिकेश के जंगलों में मिला रास्ता
कैलाश खेर ऋषिकेश के आश्रमों में भी ऐसा ही करते थे। गंगा घाट पर प्रतिदिन गंगा आरती की जाती है। जब महंत आरती की तैयारी करते थे तो कैलाश अपनी सुरीली आवाज में गाना गुनगुनाते थे, जिसे सुनकर वहां मौजूद साधु-संत भी नाचने पर मजबूर हो जाते थे। ऐसे ही एक दिन कैलाश की आवाज सुनकर एक महंत ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि तुम्हारी आवाज में जादू है, तुम इतने परेशान क्यों हो। भोलेनाथ अच्छा करेंगे। साधुओं को अपनी धुन पर नाचते देख कैलाश खेर को आत्मविश्वास महसूस हुआ और उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला किया।
दिल्ली में खाए धक्के
ऋषिकेश छोड़ने के बाद कैलाश खेल अपनी किस्मत आजमाने दिल्ली चले गये। जहां उनका संपर्क कुछ संगीत तकनीशियनों से हुआ। वह चाहते थे कि तकनीशियन उनके लिए संगीत तैयार करें, लेकिन दोनों एक-दूसरे को समझ नहीं पाए और कैलाश को यहां भी निराशा हाथ लगी। दिल्ली में जीवित रहने के लिए उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किये। इस बीच उन्होंने धक्के खाते हुए एक्सपोर्ट का काम भी किया। कैलाश हस्तनिर्मित सामान दिल्ली से जर्मनी भेजते थे।
मुंबई में बात आगे बढ़ी
दिल्ली के बाद कैलाश खेर ने मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया, लेकिन यहां भी राह आसान नहीं थी। कैलाश ने मुंबई में बहुत संघर्ष किया। जिसका उन्हें फल भी मिला और लोग कैलाश को जिंगल बनाने के लिए ऑफर देने लगे। जब आमदनी अच्छी होने लगी तो कैलाश ने पीजी छोड़ कर किराये पर फ्लैट ले लिया। कैलाश खेर ने कई पॉपुलर ब्रांड्स के लिए जिंगल गाए, दिलचस्प बात ये थी कि शुरुआत में उन्हें जिंगल का मतलब तक नहीं पता था। इस तरह कैलाश खेर ने ऋषिकेश के जंगलों से निकलकर जिंगल मास्टर बनने तक का सफर तय किया।
आपको पहला गाना कैसे मिला?
कैलाश खेर की धुन मशहूर संगीतकार जोड़ी विशाल-शेखर तक पहुंची। हालाँकि, उस समय वह संघर्ष भी कर रहे थे। इस जोड़ी ने सिर्फ एक फिल्म, प्यार में कभी-कभी के लिए गाना तैयार किया था। इसके बाद विशाल-शेखर वैसा भी होता है कभी 2 के लिए संगीत तैयार कर रहे थे। विशाल-शेखर अल्लाह के बंदे गाने के लिए गायक की तलाश कर रहे थे और उनकी तलाश कैलाश खेर पर खत्म हुई।
दुर्व्यवहार करने वालों ने वापस बुलाया
विशाल ने कैलाश खेर को फोन किया और उनके साथ एक मीटिंग फिक्स की। इसके बाद कैलाश खेर ने अपनी आवाज का ऐसा जादू चलाया कि उनका पहला ब्रेक सबसे बड़ा ब्रेक बन गया। अल्लाह के बंदे अपनी रचना के एक साल बाद रिलीज़ हुआ, लेकिन इस गाने ने आते ही तहलका मचा दिया। मुंबई में जिन लोगों ने कैलाश खेर को उनकी आवाज के लिए डांटा था, वे ही कैलाश को फोन कर साथ काम करने का ऑफर देने लगे।